Sunday, December 25, 2011

फिर भूल गया तू ...

फिर भूल गया तू ...

फिर भूल गया तू अपनी परछाई को
बीती दिनों की फटी चादर और रजाई को
जो उब मिली थी ठंडी में
उस ममता की दुलाई को
फिर भूल गया तू परछाई को .....

नापते चला है असमान सारा
दो गज ज़मी का ख्याल नहीं
अपने वजुद का सवाल है तुझे
पर उनके सवालो के जवाब नहीं
इन कदमो पे जो तू दौड़ रहा है
चलाना सिखाया है उसे भूल गया
कल जो तेरा सहारा था
उसका सहारा तू ना बन पाया
खुद्दार नहीं खुदगर्ज है तू
फिर भूल गया तू परछाई को .....

तुझे सुलाने जिसने अपनी नींद गवई तेरी माँ
तुझे पढ़ने जिसने अपने अरमान मिटाए वो बाबा
तेरी रक्षा के खातिर पल पल दुआ की वो बहना
कसे भूल गया तू वो बचपन और घर का अंगना
निकले पर तो उड़न भरने में तनिक भी देरी ना दिखाई
तोड़ के सरे रिश्ते, फिर भूल गया तू परछाई को .....
फिर भूल गया तू परछाई को .........

Ro$hni.....

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